कानपुर के 5 प्रमुख शिव मंदिर
हम आपको कानपुर के पांच प्रसिद्ध शिव मंदिर के बारे में बताएंगे। दोस्तों अगर आप कानपुर से हैं तो आपको इन मंदिर में ज़रूर आना चाहिए। पहला मंदिर जो हमारी लिस्ट में है वो है
परमट मंदिर
आनंदेश्वर मंदिर जिसको परमट मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।कानपुर के इस प्रसिद्ध मंदिर के देवता भगवान शिव हैं। परमट मंदिर गंगा के किनारे स्थित है। यहां पर रोजाना हजारों की संख्या में और सोमवार को लाखों की संख्या में भक्त दर्शन के लिए आते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आज जहां पर शिवलिंग मौजूद है
वहां पर पहले एक टीला हुआ करता था। इसी टीले पर एक आनंदी नाम की गाय जाकर रोजाना अपना दूध गिरा दिया करती थी। जब इस जगह पर खुदाई कराई गई तब यहां पर यह शिवलिंग मिला। आनंदी गाय के नाम पर ही इस मंदिर का नाम आनन्देश्वर मंदिर पड़ा। कानपुर के लोग इसे परमट मंदिर के नाम से भी जानते हैं।
सिद्धनाथ मंदिर
दूसरा मंदिर जिसकी हम बात करेंगे दोस्तों वह है कानपुर के जाजमऊ क्षेत्र में स्थित सिद्धनाथ मंदिर। भगवान शिव के इस मंदिर को दूसरे काशी के रूप में भी जाना जाता है। यहां के राजा ययाति हुआ करते थे। एक दिन उनको स्वप्न आया कि अगर यहां पर 100 यज्ञ करवाए तो यह जगह दूसरी काशी कहलाएगी।
इसके बाद राजा ने पूरे विधि विधान के साथ यहां पर यज्ञ प्रारंभ भी करवा दिया। बताया जाता है राजा ने 99 यज्ञ पूरे कर लिए थे। 100वें यज्ञ के दौरान एक कौवे ने हवनकुंड में हड्डी डाल दी थी।
इसके बाद यह जगह दूसरी काशी बनने से तो चूक गई, लेकिन आज भी भक्त इसको दूसरे काशी के रूप में जानते हैं। इस मंदिर में भी हजारों की संख्या में भक्त दर्शन के लिए आते हैं और सोमवार को लाखों की संख्या में यह मंदिर भी गंगा किनारे स्थित है।
खेरेश्वर मंदिर
तीसरा मंदिर जो हमारी लिस्ट में है वह है खेरेश्वर मंदिर जोकि कानपुर से 40 किलोमीटर दूर शिवराजपुर में पड़ता है। मान्यता है यहां पर स्थापित शिवलिंग महाभारत काल का है।
कहा जाता है भगवान शिव के इस मंदिर में द्रोणाचार्य पुत्र अश्वत्थामा रात को मंदिर बंद हो जाने के बाद पूजा करने आते हैं। यहां के पुजारियों ने बहुत बार अनुभव भी किया है कि कोई अदृश्य शक्ति आधी रात को इस मंदिर में रोजाना आती है। पुजारी जी बताते हैं,
एक बार बांदा से आया मिस्त्री मंदिर में रात 12:00 बजे के करीब पत्थर घिसाई का काम कर रहा था। तभी उसने मंदिर में घंटियों की आवाज सुनी। वह डर गया। जब मंदिर बंद है तो इतनी रात को आखिर घंटी कौन बजा रहा है। तब वह भागकर पुजारी जी के पास पहुंचा।
तब पुजारी जी ने उससे कहा अश्वत्थामा आए होंगे, अब काम बंद कर दो। अगर आप खेरेश्वर मंदिर आते हैं तो मंदिर से दो किलोमीटर दूर सरैया घाट जरूर जाएं क्योंकि यहां पर सतीश जी और नागेश्वर जी का बहुत ही प्राचीन मंदिर बना है जिसका आर्किटेक्चर देखने में बहुत ही खूबसूरत है।
जागेश्वर मंदिर
हमारे लिस्ट में चौथे नंबर पर कानपुर के नवाबगंज में स्थित जागेश्वर मंदिर है। इस मंदिर का इतिहास 300 वर्ष पुराना है। कहते हैं आसपास के लोगों पर महादेव की असीम कृपा रही है। इस मंदिर में रोजाना हजारों की संख्या में लोग दर्शन के लिए आते हैं
और सावन के महीने में यहां पर बहुत ज्यादा भीड़ देखने को मिलती है। इस मंदिर के बारे में बताया जाता है मंदिर के पीछे एक पीपल का पेड़ है।
जब मंदिर निर्माण के समय इस पीपल के पेड़ को काटा जा रहा था तब यहां पर नाग और नागिन के जोड़े के दर्शन हुए थे। जोकि इस पेड़ को काटने नहीं दे रहे थे। तब इस मंदिर का निर्माण बिना पेड़ को नुकसान पहुंचाए अर्धगोलाकार शैली में किया गया। था।
वनखंडेश्वर मंदिर
हमारी लिस्ट का पांचवां और आखिरी शिव मंदिर है वनखंडेश्वर मंदिर जोकि कानपुर से 25 किलोमीटर दूर बिठूर मंधना में स्थित है। आज जहां पर मंदिर बना हुआ है यहां पर पहले जंगल हुआ करता था। घने जंगल में शिवलिंग मिलने के कारण इस मंदिर का नाम वनखंडेश्वर पड़ा।
आज से करीब 200 साल पहले जब पेशवा बाजीराव द्वितीय अंग्रेजों से युद्ध के दौरान इस जंगल में डेरा डाले थे तब उन्होंने यहां पर इस शिवलिंग को देखा। इसके बाद उन्होंने यहां पर साफ सफाई करवाकर पूजा प्रारंभ की। इसके बाद वह बिठूर स्थित अपने किले से रोजाना यहां पर दर्शन के लिए आने लगे।
इसके बाद पेशवा बाजीराव द्वितीय अपने दत्तक पुत्र नानासाहेब के साथ यहां पर दर्शन करने के लिए आने लगे। बाद में नाना साहेब रानी लक्ष्मीबाई को लेकर इस जगह पर आने लगे। रानी लक्ष्मीबाई का कर्णछेदन संस्कार इसी मंदिर में हुआ था।