
हम भारतवासियों के सबसे प्यारे दुलारे, वृंदावन में रहने वाले और सबके दिलों पर राज करने वाले बांके बिहारी जी के बारे में आज हम आप सभी को कुछ ऐसे अनसुलझे रहस्यों को बताएंगे जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।
यहां तक कि इन रहस्यों पर कई बार विज्ञानिक शोध भी कर चुके हैं परन्तु उनकी इन रहस्यों को आज तक कोई नहीं समझ पाया। जिन कारणों की वजह से विज्ञानिकों को इस मंदिर पर शोध करना पड़ा वह बहुत ही दिलचस्प है।
बांके बिहारी जी के बारे में क्या कहा
और आखिर में वैज्ञानिकों ने बांके बिहारी जी के बारे में क्या कहा उसे सुनकर आपके होश उड़ जाएंगे। अगर आप बांके बिहारी जी में आस्था रखते हैं आप मूर्ति देख रहे हैं वो किसी ने बनाई नहीं है
बल्कि ये स्वयं यहाँ पर प्रकट हुई थी। उनको प्रकट करने पर विवश करने वाले थे। स्वामी हरिदास जी जो भगवान् कृष्ण के भक्त थे, वे निधिवन में तमाम भजन आदि गाकर श्रीकृष्ण की भक्ति किया करते थे। उनकी संगीत में भक्ति भाव से भगवान प्रसन्न हो जाते थे
राधा कृष्ण की आराधना करके लोगों की बातें

और कई बार उनके सामने आ जाते थे। उन्हें राधा कृष्ण दर्शन दिया करते थे। एक दिन वृन्दावन के लोगों ने हरिदास जी से कहा कि वे भी राधा कृष्ण के दर्शन करना चाहते हैं। तब हरिदास जी ने राधा कृष्ण की आराधना करके लोगों की बातें उनसे कही। ध्यान व पूजन के बाद जब उन्होंने आंखें खोली तो इस मूर्ति को अपने समक्ष पाया।
ऐसा भी कहा जाता है कि श्रीकृष्ण और राधा ने हरिदास जी के संगीत से प्रसन्न होकर उनके पास रहने की इच्छा व्यक्त की। तब हरिदास जी ने भगवान को बोला कि वो उनको एक लंगोट पहनाकर यहाँ पर रख लेंगे। परन्तु माता राधा के लिए उनके पास कोई आभूषण नहीं है, क्योंकि वो केवल एक संत है।
श्रीकृष्ण और राधा एक हो गये
ऐसा सुनकर श्रीकृष्ण और राधा एक हो गये और एक होकर उनकी प्रतिमा यहाँ पर प्रकट हुई और फिर हरिदास जी ने इनका नाम बांके बिहारी रखा। जब आप इस मंदिर में जायेंगे तो आप देखेंगे कि श्री बांके बिहारी जी की मूर्ति के आगे हर दो मिनट के अंतराल पर पर्दा लगाया जाता है। इसके पीछे मान्यता है
कि उनकी छवि को लगातार प्रेम पूर्वक एकटक निहारते रहने से वे भक्त की भक्ति के वशीभूत होकर उनके साथ चले जाते हैं। इसीलिए इस मंदिर में आकर आंखे बंद करके पूजा नहीं की जाती बल्कि बांके बिहारी जी के आंखों में आंखें डालकर उन्हें निहारा जाता है। कहा जाता है
कि बांके बिहारी जी की मूर्ति में ऐसा आकर्षण है जो भक्त को अपनी ओर खींचता है। भक्त की आंखों से स्वयं आंसू गिरने लगते हैं। यहां कुछ ऐसी चमत्कारी घटनाएं हो चुकी है
बांके बिहारी मंदिर
जिसने विज्ञान जगत की नजरें इस मंदिर की तरफ कर दी। एक बार एक कृष्णभक्त महिला ने अपने पति को वृन्दावन जाने के लिए राजी किया था। वो दोनों वृन्दावन पहुँचे और बांके बिहारी मंदिर में जाकर दर्शन किये।
थोड़े दिन वो लोग वहां पर रुक गये और बांके बिहारी जी के दर्शन किये। उस स्त्री के पति ने उसको वापस घर जाने को कहा। तब उस महिला ने बांके बिहारी जी से प्रार्थना की कि वे हमेशा उनके साथ ही रहे।
फिर दोनों घर जाने के लिए निकल गये। वो लोग रेलवे स्टेशन जाने के लिए घोड़ागाड़ी में बैठे। तभी बांके बिहारी जी बाल रूप में आकर उन दोनों से विनती करने लगे कि मुझे भी साथ ले जाये। इस तरफ मंदिर के पुजारी ने मंदिर से बांके बिहारी जी को गायब देखा और वो कृष्णभक्त स्त्री के प्रेम भाव को समझ गये।
वे तुरंत ही उस घोड़ागाड़ी के पीछे दौड़े और बाल रूप बांके बिहारी जी से प्रार्थना करने लगे। तब वह बालक वहां से गायब हो गया और जब पुजारी वापस मंदिर लौटकर आए तो भगवान् अपनी जगह पर थे।
बांके बिहारी जी की सेवा
ऐसी घटना होने से पति पत्नी ने संसार को त्याग दिया और बांके बिहारी जी की सेवा में अपना सारा जीवन को अर्पण कर दिया। ऐसी घटना यहाँ पर कई बार घट चुकी है जहां बांके बिहारी जी की मूर्ति गायब हो गयी थी।
पंडित उन्हें खोजने निकलते फिर जाकर उनकी मूर्ति कहीं न कहीं गली चौराहे पर बड़ी मुश्किल से मिलती और फिर उन्हें वापस लाकर इस मंदिर में स्थापित किया जाता।
इस वजह से पंडितों ने यह फैसला किया कि ऐसा कुछ करना पड़ेगा जिससे भक्त और भगवान की नजरें ज्यादा देर तक न मिले। इसीलिए बांके बिहारी के दर्शन के लिए झांकी दर्शन की व्यवस्था शुरू हो गई।
झांकी दर्शन में भगवान के सामने थोड़ी थोड़ी देर में परदे डाले जाते हैं ताकि कोई निरंतर उनको न देख सके। इन घटनाओं का पता जब विज्ञान जगत को लगा तो उन्होंने इस पर विश्वास नहीं किया।
परन्तु जब उन्होंने कई लोगों से सुना तो वे यहाँ पर रिसर्च करने पहुँच गये। उन्होंने जब बांके बिहारी जी के इस विग्रह पर। सर्च किया तो उनके होश उड़ गए। उन्होंने कहा कि यह ऐसी मूर्ति है जिसे किसी इंसानों द्वारा नहीं बनाया जा सकता। उनके चेहरे का तेज और प्रेम इतना है कि कोई भी बांके बिहारी जी का दीवाना हो जाए।
भगवान कृष्ण को बांके बिहारी
भगवान कृष्ण को बांके बिहारी नाम स्वामी हरिदास जी ने दिया था। भगवान कृष्ण की हर मुद्रा को बांके बिहारी नहीं कहा जाता बल्कि तीन कोण पर झुकी हुई मुद्रा वाले श्री कृष्ण को बांके बिहारी जी के नाम से पुकारा जाता है। तीन कोण यानी होंठों पर बांसुरी लगाए,
कदंब के वृक्ष से कमर टिकाए और एक पैर में दूसरे को फंसाई हुई मुद्रा में श्री कृष्ण को बांके बिहारी कहा जाता है। यह रूप उन्हें किसी ने दिया नहीं, बल्कि वे खुद इस मुद्रा में हरिदास जी के सामने प्रकट हुए थे। दोस्तों, जरा सोचिए कि आप बांके बिहारी मंदिर में जब जाते हैं
तो आपके दर्शन साक्षात भगवान कृष्ण से होते हैं, जो घंटों खड़े होकर अपने सभी भक्तों को बड़े प्रेमपूर्वक दर्शन देते हैं। इस मंदिर में आप बांके बिहारी जी को देख सकते हैं परंतु आप उनके चरणों को हमेशा नहीं देख सकते। इस मंदिर में साल में सिर्फ एक बार ही बांके बिहारी जी के चरणों के दर्शन होते हैं
अक्षय तृतीया जो वैशाख मास की तृतीया पर आता है

और वह दिन होता है अक्षय तृतीया जो वैशाख मास की तृतीया पर आता है। भगवान के चरणों के दर्शन अत्यंत शुभ माने जाते हैं। बांके बिहारी जी के ऐसे ऐसे चमत्कार है
वृंदावन में जिसके बारे में सुनकर आप यहां पर खिंचे चले आएंगे। यहां तक कि बांके बिहारी एक भक्त को बचाने के लिए कोर्ट में गवाही देने तक पहुंच गए थे
और इस कोर्ट के जज ने सबूत के साथ कहा था, मैंने बांके बिहारी जी को साक्षात देखा था। दोस्तो, ऐसे ही चमत्कार के क़िस्से अगर आप जानना चाहते हैं तो हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर लिखेगा। बांके बिहारी जी की कृपा आपके ऊपर हमेशा बरसती रहे।