बांकेबिहारी मंदिर में नव संवत्सर का पंचांग पूजन: जानिए इस वर्ष कितने विभाग मंगल और कितने शनि के पास हैं; जानिए इनका असर!

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पुरोहितों ने ठाकुर बांके बिहारी को नए पंचांग की जानकारी दी। मंदिर में नव वर्ष की शुभकामनाएँ दी गईं और नीम की पत्तियों और माखन मिश्री का भोग चढ़ाया गया। ठाकुर राधारमण मंदिर में भी इसी पंचांग की सुनाई गई।

मथुरा के वृंदावन में स्थित ठाकुर बांके बिहारी मंदिर में मंगलवार की सुबह, नव संवत्सर 2081 के अवसर पर पुरोहित ने देवी-देवताओं के सामने नए पंचांग का पूजन किया।

फिर उन्होंने इसे ठाकुर बांके बिहारी को सुनाया। मंदिर के सेवाधिकारी ने ठाकुरजी को माखन, मिश्री और नीम की पत्तियों का भोग चढ़ाया और उसे भक्तों में वितरित किया। फिर प्राचीन राधारमण मंदिर में भी पुरोहित ने देवी-देवताओं के सामने पंचांग का श्रवण कराया।

सुबह, बांके बिहारी मंदिर में शृंगार आरती के बाद, पुरोहित आचार्य छैल बिहारी मिश्र ने मंत्रों के साथ नए पंचांग की पूजा की। फिर उन्होंने ठाकुर बांके बिहारी को पंचांग सुनाया। मंदिर के पुरोहित ने पूरे साल का ठाकुरजी के सामने लेखा-जोखा बताया, जिसमें साल में होने वाले तिथियों, पर्वों और त्योहारों की सूची थी।

माखन मिश्री और नीम की कोंपल का लगाया विशेष भोग

इसके बाद मंदिर के सेवायत गोस्वामियों ने ठाकुरजी को माखन, मिश्री और नीम की पत्तियों का विशेष भोग चढ़ाया। इस भोग को गोस्वामियों ने ठाकुरजी और भक्तों में बाँटा, नव संवत्सर की शुभकामनाएँ दी गईं। फिर छैल बिहारी मिश्र ने वृंदावन के प्राचीन मंदिरों में से एक, ठाकुर राधारमण मंदिर में भी आराध्य के समक्ष नए पंचांग की सूचना दी।

मंदिर के सेवायत, पदमलोचन गोस्वामी ने ठाकुरजी को छप्पन भोग अर्पित किए। छैल बिहारी मिश्र ने बताया कि इस वर्ष का राजा मंगल और मंत्री शनि हैं। दोनों ही ग्रह तामसी हैं और इनके संबंध अच्छे नहीं माने जाते हैं।

इसलिए, शासन और प्रशासन के बीच अनबन होने के कारण जनता परेशान हो सकती है। इस वर्ष चार विभाग मंगल के पास हैं और चार शनि के पास हैं।

युगों से चली आ रही परंपरा

मेघेष का पद भी शनि को प्राप्त होने से वर्षा कम होगी और गर्मी अधिक रहेगी। वहीं ठाकुर राधरमण मंदिर के सेवायत, पदमलोचन गोस्वामी ने बताया कि मंदिरों में सदियों से हिंदी नव वर्ष, सभी पर्व, त्योहार और उत्सव मनाए जाते हैं।

तिथियां और वार संवत पंरपरा में ही निहित हैं। इसलिए मंदिरों में इसका विशेष महत्व है। उन्होंने बताया कि भगवान को नव पंचांग सुनाने की परंपरा युगों से चली आ रही है।

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