आध्यात्मिक नगरी मथुरा जहां देशभर से पर्यटक आते हैं। मथुरा में कई ऐसे स्थान हैं जिन्हें जरूर देखना चाहिए। मथुरा में अगर आप इन स्थानों को देखना चाहते हैं तो आपको यहां दो या तीन दिन रुकना होगा। तो शुरुआत करते हैं श्रीकृष्ण जन्मभूमि से। कृष्ण जन्मभूमि मथुरा का एक प्रमुख धार्मिक स्थान है।
इस जगह को भगवान कृष्ण का जन्म स्थान माना जाता है। भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि का न केवल राष्ट्रीय स्तर पर महत्व है बल्कि वैश्विक स्तर पर जनपद मथुरा भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान से ही जाना जाता है। यहां पर विदेशों से भी भगवान श्री कृष्ण के दर्शन के लिए प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु आते हैं। आध्यात्मिक नगरी में घाटों का अलग ही महत्व होता है। हरिद्वार, वाराणसी आदि शहरों की पहचान इसी से है।
विश्राम घाट मंदिर
विश्राम घाट द्वारिकाधीश मंदिर से 30 मीटर की दूरी पर नयाबाजार में स्थित है। यह मथुरा के 25 घाटों में से एक प्रमुख घाट है। विश्राम घाट के उत्तर में 12 है और दक्षिण में 12 घाट हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां पर अनेक संतों ने तपस्या की और इन्हें अपनी विश्राम स्थली बनाया। विश्राम घाट पर यमुना महारानी का अति सुंदर मंदिर विराजमान है।
प्रेम मंदिर
प्रेम मंदिर वृन्दावन में स्थित है। इसका निर्माण जगद्गुरु कृपालु जी महाराज द्वारा भगवान कृष्ण और राधा के मंदिर के रूप में करवाया गया।
इस मंदिर में शाम के समय लेजर लाइट से गीतों के जरिए दिखाई जाने वाली आकृति, रंग बिरंगी रोशनी से सजी मंदिर की दीवारें और यहां की अद्भुत संरचना आपके मन को मोह लेंगी। इस मंदिर के निर्माण में 11 वर्ष का समय लगा और लगभग 100 करोड़ रुपए की धनराशि खर्च हुई। प्रेम मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है
इस्कॉन मंदिर
इस्कॉन मंदिर। इस्कॉन मंदिर के प्रांगण में कदम रखते ही आपको एक शांति का अनुभव होगा। आप प्रेम मंदिर की तरह यहां भी काफी देर तक बैठकर मंत्रमुग्ध हो सकते हैं। यहां पर हरे रामा हरे कृष्णा का उच्चारण आपको भाव विभोर कर देगा। दिलचस्प बात यह है कि यहां विदेशी सैलानियों की अच्छी खासी मौजूदगी रहती है।
आप यहां उन्हें भक्ति गीतों को गाते देख सकते हैं। भारत के सुदूर गांवों में अगर आप कभी गए हों तो वहां पर आपने जय गुरुदेव के नारे जरूर पढ़े होंगे। देश विदेश में 20 करोड़ से अधिक अनुयायी वाले जय गुरुदेव के आश्रम को देखे बिना मथुरा का सफर अधूरा रह जाएगा।
जय गुरुदेव आश्रम मंदिर
मथुरा में आगरा दिल्ली राजमार्ग पर स्थित जय गुरुदेव आश्रम की डेढ़ 100 एकड़ के लगभग भूमि पर संत बाबा जय गुरुदेव का एक अलग ही संसार है। व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को सुधारने हेतु जय गुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था एवं जय गुरुदेव धर्म प्रचारक ट्रस्ट का संचालन होता है। इसके तहत कई लोक कल्याणकारी योजनाएं चलाई जाती हैं। शाकाहार अपनाने का संदेश भी इसी के तहत दिया जाता है।
द्वारकाधीश मंदिर
इतना ही। मथुरा के मंदिरों में द्वारकाधीश मंदिर की विशेष महत्ता है। यहां की आरती विशेष रूप से दर्शनीय है। मंदिर में मुरली मनोहर की सुंदर मूर्ति विराजमान है। यहां मुख्य आश्रम में भगवान कृष्ण और उनकी प्रिय राधिका रानी की प्रतिमाएं हैं। इस मंदिर में और भी दूसरे देवी देवताओं की प्रतिमाएं विराजमान हैं। मंदिर के अंदर बेहतरीन नक्काशी, कला और चित्रकारी का अद्भुत नमूना है।
गोवर्धन पर्वत मंदिर
गोवर्धन पर्वत की कहानी आपने धारावाहिकों में देखी या किताबों में जरूर पढ़ी होगी। गोवर्धन व उसके आसपास के क्षेत्र को ब्रजभूमि कहा जाता है। बताया जाता है कि द्वापर युग में यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को इंद्र की वर्षा प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी तर्जनी अंगुली पर उठा लिया था।
गोवर्धन पर्वत को गिरिराज जी भी कहते हैं। आज भी दूर दूर से श्रद्धालु इस पर्वत की परिक्रमा करने आते हैं। यह सात कोस की परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर की है। भक्त इस परिक्रमा को पैदल चलकर या वाहनों की मदद से पूरी करते हैं। इस मार्ग में कई अन्य धार्मिक स्थल भी पड़ते हैं। इनमें राधाकुंड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, गोविंद कुंड, पूंछरी का लोटा।
निधिवन मंदिर
दुनिया में आज भी कई ऐसे रहस्य हैं जहां आकर विज्ञान की सीमाएं भी खत्म हो जाती हैं। ऐसा ही एक रहस्य है वृंदावन का निधिवन। ऐसी मान्यता है कि इस अलौकिक वन में आधी रात को भगवान कृष्ण, राधा और गोपियां रास लीला रचाते हैं। इस प्रेम लीला को जो भी मनुष्य देख लेता है वो अपनी नेत्रज्योति खो बैठता है
या फिर दिमागी संतुलन गवां देता है। निधिवन में तुलसी के पेड़ हैं। हर पौधा जोड़े में है। ऐसा कहा जाता है कि श्री कृष्ण और राधा की रासलीला के दौरान तुलसी के पौधे गोपियों का रूप ले लेते हैं। प्रातः होने पर ही गोपियां पुनः तुलसी का रूप ले लेती हैं।
किला मंदिर
यमुना के किनारे पर स्थित कंस का किला आज उजाड़ होकर खंडहर में तब्दील हो चुका है। इस किले का निर्माण 16 वीं सदी में राजा मानसिंह ने कराया था। इसके बाद महाराजा सवाई जय सिंह ने ग्रह नक्षत्रों का अध्ययन करने के लिए एक वेधशाला का निर्माण कराया। यह किला बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है और इसकी दीवारें काफी ऊंची हैं।
बांके बिहारी मंदिर
बांके बिहारी मंदिर मथुरा रेलवे स्टेशन से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। श्री बांके बिहारी जी के दर्शन से सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। बांके बिहारी जी का यह मंदिर राधा कृष्ण का विग्रह। यानि सम्मलित रूप है। इस कारण बांके बिहारी जी के श्रंगार में आधी मूर्ति पर स्त्री और आधी मूर्ति पर पुरुष का श्रृंगार किया जाता है।
इस मंदिर की एक रोचक बात यह है कि यहां आंख बंद करके पूजा नहीं की जाती है बल्कि आंखें खोलकर बांके बिहारी जी को निहारा जाता है। इस मूर्ति में ऐसा आकर्षण है जो भक्तों को अपनी ओर खींचता है।
और आंखों से स्वतः ही आंसू गिरने लगते हैं। ये थे मथुरा जिले के 10 प्रमुख धार्मिक और पर्यटन स्थल। मिलते हैं आपसे अगली वीडियो में कुछ नई जानकारी के साथ तब तक के लिए नमस्कार।